Thursday 26 September 2013

"गीता प्रेस संग्रह और आसाराम... !!!"

आज बहूत दिनो बाद फिर कुछ सज़ोंने को मिला| बचपन से ही इन अंकों से एक विशेष लगाव सा रहा है... दादी के जीवन से जो भी सीखने को मिला, ये आज भी उन्हें जिंदा किए हुए हैं| हाँ... अपना गीता प्रेस गोरखपुर का कल्याण मासिक पत्रिका...| कवर पेज और फिर पेज थ्री कहलें... राम, कृष्ण, हनुमान... और अनगिनत देवी देवताओं की लिलामय तस्वीरें...इनकी सेलेब्रिटी स्टेटस कभी बदलने वाली नहीं... जितनी पुरानी... उतना पुरातन... फिर कभी अध्यात्म का कोई उम्र ही नहीं होता... ऐसा सिर्फ़ हमारे हिंदू धर्म में ही नहीं... संसार के सभी धर्मों के साथ कुछ ऐसा ही... | जैसे ही आल्मिरा खोला तो देखा एक दो चूहो का रैन बसेरा भी इसने कितने प्यार से बना डाला है..| फिर थोड़ी साफ सफाई चालू किया तो... उनके पिंक से छोटे छोटे बच्चे आँखें बंद किए मानो समूचे अध्यात्म का सुख ले रहे हैं| अभी कुछ दीनो पहले नॅशनल जियोग्रॅफिक चॅनेल पे देखा शार्क मछली के गर्भाशय से ही उनके बच्चे शिकार करने लगते हैं... फिर ये क्यों ना लें अपने अध्यात्म का लेसन..| धीरे धीरे उन्हे उठा कर सेफ प्लेस पे रखा... और फिर हमेशा की तरह... सारे अंको को अरेंज करने लगा... फिर इन अंकों में केवल कल्याण ही नहीं... अखंड ज्योति... युग निर्माण योजना... सनातन धर्म पत्रिका... ऋषि प्रसाद... भी मिले| अचानक ऋषि प्रसाद के अंको को जैसे ही देखा... तो कवर पेज वेल बाबा को देख ठिठक पड़ा... की ये कौन से बाबा हैं... साई बाबा, बाबा रामदेव को पहचानने में कोई परेशानी नहीं होती पर ये कौन से बाबा हैं.... मोरारजी बापू... या... नही ये तो आसाराम बापू हैं| मन बहूत अचरज में था... इन्हें और इनके ऋषि प्रसाद को आज के घटित घटनाक्रमों से जोड़ के देखूं या फिर इन्हें यूँ ही रहने दूं...| कुछ देर सोच में रहा.... बहूत सी बातें उमर घूमर करने लगी.... इन अंकों के कवर पेज को हटा दूं... या पूरी की पूरी ऋषि प्रसाद अंको की ही तिलांजलि दे दू....| फिर एक और नयी सोच.... की इन अंको को तो माफ़ कर ही सकता हूँ.... फिर मैं कौन होता हूँ... इनमें छिपे अध्यात्म को माफ़ करने वाला... मैं कोई पावर हाउस तो नहीं.... फिर लगा जैसे ये भी कोई अध्यात्म का... पार्षियल सबमिशन तो नहीं.... |

बस यूँ ही अध्यात्म चलता रहता है... भक्ति भावना भी बहती रहती है... इसी बहाने कुछ व्यापार भी होता रहता है.... कहीं  कोई फिल्म ही ना बना दे.... बस व्यापार चलता रहे.... सबका कल्याण होता रहे... होप की राम भी याद आते रहे... आसाराम-होपराम नहीं भाई.... बस राम..... रामचरित-मानस वाले राम... |


विप्र प्रयाग घोष 

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