Wednesday, 11 December 2013

भगवान दत्तात्रेय का अद्भुत दर्शन...!!!

    जीवन नित नये दिन आपको एक सत्य की ओर ले जाने की कोशिश करती जाती है। बस आप और आप की इच्छाशक्ति इसे किस रूप में ढाल पाती है ये आज भी भविष्य के गर्भ में झाँकने की सकारात्मक कोशिश भर ही तो है। आज से कुछ दिन पहले जहाँ मैं कार्यरत था, विद्या-दान इंजिनियरिंग कॉलेज बक्शर में, वहाँ के डाइरेक्टर का मेरी मोबाइल पे एक संदेश आया की, उस संस्थान के परिसर में साई बाबा की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा वहाँ वर्षों से बन रहे मंदिर में कर दी गयी है, आप चाहें तो इस पावन अवसर पे यहाँ आ सकते हैं। इस खबर की अनुभूति खुद को बहूत तृप्त करने जैसा था। मैं उस वक़्त पटना में था। फिर जैसे मैं मन ही मन वहाँ जाने की तैयारी करने लगा। दिन के भोजन के बाद कुछ पल आराम किया। फिर पता नहीं नींद कहाँ से आ गयी और फिर जब जगा तो वह विहंगम रूप मेरे आँखों के सामने था, जो मैने स्वप्न में देखा था। जैसे इस त्रिमूर्त रूप को मैं क्या नाम दूं... जो मैने उस रूप को उस संस्थान के परिसर में अपने स्वप्न में देख कर जगा था। झट मैने इस जानकारी को वहाँ के डाइरेक्टर को कुछ इस तरह दे पाया..." की सर मैने तो वहाँ त्रि-मुख विष्णु रूप के मंदिर को बनते देखा है।" ये बात १७-११-२०१३ की है।

          फिर मैं पूर्णिया आ गया..। फिर आज से दो दिन पहले हिन्दुस्तान दैनिक के एडिटोरियल पेज को जैसे ही पढ़ने के लिए खोला तो मेरी नज़र उस विहंगम रूप पे जा टिकी... जिस रूप को मैने उस दिन अपने स्वप्न में देखा था। उस अद्भुत रूप का नाम भगवान दत्तात्रेय के रूप में मिला, और हिंदू पौराणिक अध्यात्म से जुड़ी उनकी जानकारियाँ। उस आलेख में महा योगेश्वर दत्तात्रेय की जन्म तारीख १६ डिसेंबर की मिली... और मैं अपने सुखद आश्चर्य में था की ठीक १६ डिसेंबर २०१२ को मैं उस संस्थान को जाय्न किया था, और मानो उस संस्थान की दैविक आभामंडल आज भी प्रभाव बिखेर रही है..। फिर  झट मै इस जानकारी को भी  वहाँ के डाइरेक्टर को कुछ इस तरह दे पाया..." की सर मैने तो वहाँ त्रि-मुख विष्णु रूप के मंदिर को बनते देखा था, वह विहंगम रूप भगवान दत्तात्रेय का था  ..."

विप्र प्रयाग घोष


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